मंज़र दिल का उदास अच्छा नहीं लगता
तुम नहीं होते पास अच्छा नहीं लगता
तेरी क़दबुलन्दी से नहीं इनकार कोई
लेकिन छोटे एहसास, अच्छा नहीं लगता
जैसे भी हैं हम रहने दो वैसा ही हमको
बनके कुछ रहना खास अच्छा नहीं लगता
जब से तेरी यादों ने बसाया है घर दिल में
ये क़ाफ़िला-ए-अन्फास अच्छा नहीं लगता
ये मुखौटों से कह दो जाकर नदीश अब
सच का इतना भी पास अच्छा नहीं लगता
चित्र साभार- गूगल
14 Comments
बहुत ही सुंदर शेरों से सजी रचना !!!!!!!!! सादर शुभकामना आदरणीय लोकेश जी |
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteवाह्ह.... लाज़वाब गज़ल लोकेश जी।
ReplyDeleteबहुत उम्दा👌
शुक्रिया श्वेता जी
Deleteउम्दा ..शायरी ..👌👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीया
Deleteसुंदर अहसासों से सजी गजल हर शेर उम्दा।
ReplyDeleteशुभ संध्या।
शुक्रिया आदरणीया
Deleteवाह। बहुत ख़ूब। बेहद उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय
Deleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीया
DeleteLajwab bhaii ji
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय
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