रुख़ से ज़रा नक़ाब उठे तो ग़ज़ल कहूं
महफ़िल में इज़्तिराब उठे तो ग़ज़ल कहूं
इस आस में ही मैंने खराशें क़ुबूल की
काँटों से जब गुलाब उठे तो ग़ज़ल कहूं
छेड़ा है तेरी याद को मैंने बस इसलिए
तकलीफ बेहिसाब उठे तो ग़ज़ल कहूं
अंगड़ाईयों को आपकी मोहताज है नज़र
सोया हुआ शबाब उठे तो ग़ज़ल कहूं
दर्दों की इंतिहा से गुज़र के जेहन में जब
जज्बों का इन्किलाब उठे तो ग़ज़ल कहूं
तारे समेटने के लिए शोख़ फ़लक से
धरती से माहताब उठे तो ग़ज़ल कहूं
ठहरी है ग़म की झील में आँखें नदीश की
18 Comments
वाह्ह्ह....शानदार गज़ल...बहुत ही लाज़वाब लोकेश जी।
ReplyDeleteबहुत आभार श्वेता जी
Deleteछेड़ा है तेरी याद को मैंने बस इसलिए
ReplyDeleteतकलीफ बेहिसाब उठे तो ग़ज़ल कहूं ...
क्या अंदाज़ है ग़ज़ल कहने का ... बहुत खूब ...
बहुत आभार आदरणीय
Deleteदो लाइने मेरी भी...
ReplyDeleteमजा आ गया पढकर, नशे में हूँ,
मुझको होश आ जाए तो कुछ कह सकूँ
वाह।। वाह शानदार गजल...नदीश जी
आभार आदरणीय
DeleteFantastic,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteहमेशा की तरह लाज़वाब
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteवाह बेहतरीन उम्दा।
ReplyDeleteआभार आदरणीया
DeleteAti Sundar rachna
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत ख़ूब आदरणीय 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteआदरणीय लोकेश जी -- नज़ाकत भरे बेमिसाल शेरों की जितनी सराहना करूं कम है |एक एक शेर लाजवाब है और याद रखने योग्य है --
ReplyDeleteअंगड़ाईयों को आपकी मोहताज है नज़र
सोया हुआ शबाब उठे तो ग़ज़ल कहूं
दर्दों की इंतिहा से गुज़र के जेहन में जब
जज्बों का इन्किलाब उठे तो ग़ज़ल कहूं !!!!!!!!!!!
वाह और सिर्फ वाह -- आदरणीय कविवर ! अनंत शुभकामनाओं के साथ ये प्रार्थना- माँ सरस्वती आप पर ये कृपा बनाये रखे |
बहुत बहुत आभार
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