गिर रही है आँख से शबनम तुम्हारे हिज़्र में
एक ही बस एक ही मौसम तुम्हारे हिज़्र में
क़तरे-क़तरे में शरारों सी बिछी है चांदनी
बन गयी है हर ख़ुशी मातम तुम्हारे हिज़्र में
आईना-ओ-धूप के बिन अक्स न साया मेरा
किस क़दर तनहा हूँ मैं हमदम तुम्हारे हिज़्र में
खो गयी है अब नज़र की तिश्नगी जाने कहाँ
अश्क़ में डूबा है ये आलम तुम्हारे हिज़्र में
दे भी जाओ अब सनम आकर सुकूं दिल को मेरे
या बता जाओ करें क्या हम तुम्हारे हिज़्र में
तुम नहीं तो सांस भी भारी लगे है बोझ सी
यूँ ही निकलेगा लगे है दम तुम्हारे हिज़्र में
फ़िक्र-ए-दुनिया है न खुद की है ख़बर कोई मुझे
अब ख़ुशी है न ही कोई ग़म तुम्हारे हिज़्र में
फूल उम्मीदों के सारे, आज कांटे बन गए
हर क़दम पतझर का है मौसम तुम्हारे हिज़्र में
एक-एक लम्हा लगे है अब क़यामत सा नदीश
ख़्वाब भी होने लगे हैं नम तुम्हारे हिज़्र में
चित्र साभार- गूगल
हिज़्र- जुदाई, विरह
शरारों- अंगारों
तिश्नगी- प्यास
वाह ... लाजवाब ग़ज़ल और कमाल के शेर ...
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आदरणीय
हटाएंक्या बात बेहद शानदार गज़ल है लोकेश जी।वाह्ह्ह...👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया श्वेता जी
हटाएंबहुत अच्छी गजल...!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंगजल ही गजल, समी श्रेष्ठ
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंयाद गया इकबाल साहब का ये श़ेर
यूँ गुमाँ होता है गर्चे है अभी सुबह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात
सादर
आभार आदरणीया
हटाएंशानदार गजल नरम भावुक दिल को छूती
जवाब देंहटाएंसभी शेर एक से बढ़कर एक।
शुभ दिवस।
आभार आदरणीया
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 22 मार्च 2018 को प्रकाशनार्थ 979 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंशानदार... लाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत आभार
हटाएंबेहतरीन गजल लोकेश जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंलाजवाब ग़ज़ल 👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
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