भला मायूस हो क्यूँ आशिकी से चाहते क्या हो?
अभी तो आग़ाज़ ही है फिर अभी से चाहते क्या हो?
कहाँ हर आदमी दिल चीर के तुमको दिखायेगा
बताओ यार तुम अब हर किसी से चाहते क्या हो?
फ़क़त हों आपके आँगन में ही महदूदो-जलवागर
घटा से धूप से और चांदनी से चाहते क्या हो?
वफायें रोक लेंगी तुमको मेरी, है यकीं मुझको
दिखाकर इस तरह की बेरुखी से चाहते क्या हो?
छिपा सकते हो कब तक खुद से खुद को तुम नदीश
चुराकर आँख अपनी आरसी से चाहते क्या हो?
चित्र साभार- गूगल
महदूदो-जलवागर- सीमित और रौशन
14 Comments
वाह्ह्ह......बहुत खूब👌👌
ReplyDeleteआभार श्वेता जी
Deleteबहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteआभार आदरणीय
Deleteहम तो वाह वाह ही कहेंगे, और चाहते क्या हो....
ReplyDeleteशानदार
आभार आदरणीय
DeleteBahut Hi Shandar
ReplyDeleteआभार आदरणीय
Deleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आदरणीया
Deleteबेहतरीन से भी बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया
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शुक्रिया आपका
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