भला है बुरा है, है अपनी जगह
मेरा फ़ैसला है, है अपनी जगह
ज़माना भले बेवफ़ा हो मगर
अभी भी वफ़ा है, है अपनी जगह
नहीं प्यार कुछ भी सिवा प्यार के
तेरा सोचना है, है अपनी जगह
नज़ारे हसीं लाख दुनिया के हों
सनम की अदा है, है अपनी जगह
मुलाकातें उनसे हुईं तो बहुत
मगर फ़ासला है, है अपनी जगह
रहे कोशिशें दोस्ती की सदा
ये शिकवा-गिला है, है अपनी जगह
है ऐसा या वैसा या जैसा नदीश
वो सबसे जुदा है, है अपनी जगह
वाहहह, क्या बात लाज़वाब रचना
जवाब देंहटाएंलोकेश जी
है ऐसा या वैसा या जैसा नदीश
वो सबसे जुदा है, है अपनी जगह
जुदा अंदाजे़ बयां
आभार श्वेता जी
हटाएंरहे कोशिशें दोस्ती की सदा
जवाब देंहटाएंये शिकवा-गिला है, है अपनी जगह
है ऐसा या वैसा या जैसा नदीश
वो सबसे जुदा है, है अपनी जगह...
आदरणीय नदीश जी की बेहतरीन गजलों में से एक.....
काश! मुझे इसे स्वर देने का अवसर मिल पाता।
शुभकामनाएँ
धन्यवाद आदरणीय
हटाएंआप बेशक स्वर दीजिये इस ग़ज़ल को
वाह बहुत खूब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंवाह!हमेशा की तरह लाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंवाह बहुत सुंदर उम्दा अस्आर, अपनी जगह वाह।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंवाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंवा...व्व...बहुत सुंदर रचना लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया
हटाएंरहे कोशिशें दोस्ती की सदा
जवाब देंहटाएंये शिकवा-गिला है, है अपनी जगह
बेहतरीन रचना
हार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर