फैसलों का तेरे ऐ ज़िन्दगी हिसाब रखता हूँ।
गुज़िश्ता हर लम्हें की तेरे इक किताब रखता हूँ
देखकर चुप हूँ तेरी चश्मे-परेशां ऐ वक़्त
वगरना तेरे हर सवाल का जवाब रखता हूँ
दोस्ती में सुना है अब कहीं वफ़ा ही नहीं
बात ये है कि मैं भी थोड़े से अहबाब रखता हूँ
उम्मीदो-अश्क़ से बावस्ता हैं आँखें उससे
शिकस्ता ही सही वफ़ा का मैं जो ख़्वाब रखता हूँ
कोई ख़्वाहिश कोई हसरत नहीं खुशी की नदीश
चित्र साभार-गूगल
दिल से लिखी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाज़वाब है लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार श्वेता जी
हटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत शेर हैं ग़ज़ल के ...
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंबहुत ही खूबसूरत गजल, लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीया
हटाएंबहुत सुंदर शेर एक से एक,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल।
बहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंबेहतरीन, बार बार पढ़ती हूँ आपकी ग़ज़लें आदरणीय
जवाब देंहटाएंज़र्रा नवाज़ी है आपकी
हटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया
सुंदर गजल 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंबहुत खूब 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंउम्मीदो-अश्क़ से बावस्ता हैं आँखें उससे
जवाब देंहटाएंशिकस्ता ही सही वफ़ा का मैं जो ख़्वाब रखता हूँ
कोई ख़्वाहिश कोई हसरत नहीं खुशी की नदीश
उतर के देख दिल में कितने मैं अज़ाब रखता हूँ...
बेहतरीन गजल नदीश जी।
आभार आदरणीय
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