झरते तुम्हारी आँख से जानम नमी के फूल
खिलने लगे हैं दिल में मेरे तिश्नगी के फूल
भटके न राहगीर कोई राह प्यर की
रक्खें हैं हमने रहगुज़र में रौशनी के फूल
दिल में तुम्हारी याद का जो चाँद खिल गया
झरने लगे हैं आँख से भी चांदनी के फूल
बोएंगे मुसलसल जो सभी दुश्मनी के बीज
देखेगी कैसे नस्ल कल की दोस्ती के फूल
हस्ती को अपनी पहले मुकम्मल तो कीजिये
खिलते हैं बहुत मुश्किलों से आदमी के फूल
अपना लिए हैं जब से तुमने ग़म मेरे सनम
हर सांस महकती है लिए बन्दिगी के फूल
है तसफिये कि ख़ुशी से बेहतर ग़म-ए-हयात
खिलते हैं दर्द के चमन में ज़िन्दगी के फूल
छूकर गुले-ख्याल-ए-नाज़ुकी को तुम्हारी
होंठो पे गुनगुना रहे हैं शायरी के फूल
भूलेगा कैसे तुझको ज़माना कभी नदीश
अशआर तेरे आये हैं लेके सदी के फूल
अशआर तेरे आये हैं लेके सदी के फूल
28 Comments
वाह्ह्ह...वाह्ह्ह..बेहद खूबसूरत लाज़वाब ग़ज़ल लोकेश जी...👌👌
ReplyDeleteआभार श्वेता जी
Deleteबहुत बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआभार आदरणीय
Deleteबुत लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के ... गहरा एहसास लिए ...
ReplyDeleteबहुत आभार आदरणीय
Deleteउम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteफॉलोबर्स का गैजेट लगाइए अपने ब्लॉग पर। जिससे कि हम फॉलो करें और हमारे डैशबोर्ड पर आपकी फीड आती रहे।
ReplyDeleteलगा दिया आदरणीय
Deleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल, लोकेश जी।
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteबेहतरींन ग़ज़ल ह
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खूबसूरत.... बहुत लाजवाब....
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर गजल 👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteदिल को छू लेने वाली गजल बहुत बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत ही मनभावन गजल है आदरणीय लोकेश जी | ज़िन्दगी , बन्दगी , चांदनी , रौशनी . सदी तिश्नगी और शायरी के भावों के फूलों से महकती रचना के लिए हार्दिक बधाई | नाजुक से सभी शेर मन को छू रहे है | सादर --
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत ही सुन्दर 👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteलाजवाब ग़ज़ल ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर गजल, मन भावन ,
ReplyDeleteअप्रतिम गठन लिये उम्दा गजल ।
हार्दिक आभार आपका
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