सैकड़ों खानों में जैसे बंट गयी है ज़िन्दगी
साथ रहकर भी लगे है अज़नबी है ज़िन्दगी
झांकता हूँ आईने में जब भी मैं एहसास के
यूँ लगे है मुझको जैसे कि नयी है ज़िन्दगी
न तो मिलने कि ख़ुशी है न बिछड़ जाने का ग़म
हाय ये किस मोड़ पे आकर रुकी है ज़िन्दगी
सीख ले अब लम्हें-लम्हें को ही जीने का हुनर
कौन जाने और अब कितनी बची है ज़िन्दगी
वस्ल भी है, प्यार भी है, प्यास भी है जाम भी
फिर भी जाने क्यों लगे है अनमनी है ज़िन्दगी
अब कहाँ तन्हाई औ' तन्हाई का साया नदीश
उसके ख़्वाबों और ख़्यालों से सजी है ज़िन्दगी
चित्र साभार- गूगल
बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत खूब........सीख लो अब लम्हे लम्हे को जीने का ये हुनर,कौन जाने अब कितनी बची है जिंदगी............जबरदस्त👌
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया
Deleteआपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया
Delete"सीख ले अब लम्हें-लम्हें को ही जीने का हुनर
ReplyDeleteकौन जाने और अब कितनी बची है ज़िन्दगी" अति सुन्दर !!
बेहद शुक्रिया
Deleteलाजवाब गजल...
ReplyDeleteवाह!!!
बेहद शुक्रिया
Deleteझांकता हूँ आईने में जब भी मैं एहसास के
ReplyDeleteयूँ लगे है मुझको जैसे कि नयी है ज़िन्दगी
वाह ! बहुत सुंदर पंक्तियाँ । बहुत उम्दा रचना ।
बहुत बहुत आभार
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