रस्ते तो ज़िन्दगी के साज़गार बहुत थे
खुशियों को मगर हम ही नागवार बहुत थे
बिखरे हुए थे चार सू मंज़र बहार के
बिन तेरे यूँ लगा वो सोगवार बहुत थे
ये जान के भी अहले-जहां में वफ़ा नहीं
दुनिया की मोहब्बत में गिरफ्तार बहुत थे
थी नींद कैद, आंसुओं की ज़द में रात भर
आँखों में चंद ख़्वाब बेक़रार बहुत थे
झुलसे मेरी वफ़ा के पांव आख़िरश नदीश
या रब तेरे यक़ीन में शरार बहुत थे
चित्र साभार- गूगल
साज़गार- अनुकूल
नागवार- अप्रिय
सोगवार- दुखी
सू- दिशा
18 Comments
आदरणीय लोकेश जी -- मुहब्बत के गहरे रंग में रंगे सभी अशार एक से बढ़कर एक हैं | शब्दों के अर्थ लिख आपने रचना को बेहद सरल सुगम बना दिया है |
ReplyDeleteबिखरे हुए थे चार सू मंज़र बहार के
बिन तेरे यूँ लगा वो सोगवार बहुत थे--------------------------- अति सुंदर और हृदयस्पर्शी !!!!!!!!!सादर ---
बेहद शुक्रिया आदरणीया
Deleteशानदार 👌
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 10/04/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत बहुत आभार आपका
Deleteवाह्ह्ह....बेहद शानदार ग़ज़ल हर.शेर लाज़वाब है लोकेश जी...👌👌
ReplyDeleteआभार शब्दार्थ लिखने के लिए।:)
बेहद शुक्रिया
Deleteबहुत लाजवाब शेर ...
ReplyDeleteमुहब्बत नहीं है बाकी जहाँ में फिर भी मुहब्बत करने वाले कितने हैं ...
गज़ब के शेर ... दाद कबूल फरमाएं ...
बेहद शुक्रिया
Deleteउम्दा, बेहतरीन ग़ज़ल नदीश जी.
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया
Deleteबहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 02 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया
Deleteबहुत खूब!!
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया
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