तुम बिन बहार का मौसम उदास है।
आकर तो देखो ये आलम उदास है।।
खिलने से पहले ही मसले हैं गुंचे
मंज़र ये देखकर शबनम उदास है।।
आराम आये भी तो कैसे आये
ज़ख्मों की शिद्दत से मरहम उदास है।।
बीमारे-उल्फ़त हैं कितने न पूछो
कोई ज़ियादा कोई कम उदास है।।
आके किसी रोज देखो नदीश को
जब से गये हो तुम हरदम उदास है।।
चित्र साभार-गूगल
तुम बिन बहार का मौसम उदास है।
ReplyDeleteआकर तो देखो ये आलम उदास है।।
बहुत खूबसूरत......, लाजवाब सृजन ।
हार्दिक आभार
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब...
हार्दिक आभार
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 03 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteवाह !! बहुत ख़ूब 👌👌👌
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteबीमारे-उल्फ़त हैं कितने न पूछो
ReplyDeleteकोई ज़ियादा कोई कम उदास है।।
बहुत खूब ..............
आराम आये भी तो कैसे आये
ज़ख्मों की शिद्दत से मरहम उदास है
अन्तस् की मखमली . महीन अनुभूतियों को बहुत ही कोमलता से उकेरती रचना बहुत प्यारी है आदरणीय लोकेश जी | आपके लेखन की मौलिक शैली को संजोये ये रचना आपकी एनी रचनाओं की तरह वाह और सिर्फ वाहकी हक़दार है | हार्दिक शुभकामनायें और बधाई |
सुन्दर भावपूर्ण रचना .
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteमकते का शेर तो लाजवाब है ...
हर शेरर खूबसूरत है इस ग़ज़ल का ...
भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
वाह क्या बात है
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