तन्हाई और तेरे इन्तिज़ार का लुत्फ़
पलकों पे गर्म अश्क़ों के करार का लुत्फ़
जिन आँखों में दफ़्न हुए गुलों के ख़्वाब
देखा ही नहीं फिर कभी बहार का लुत्फ़
पहली तारीख को ही जेब खाली हो गई
हम ले भी न पाए थे पगार का लुत्फ़
तेरी यादों की भीनी-भीनी पुरवाई में
इक कड़क चाय और सिगार का लुत्फ़
सुलगे-सुलगे नदीश, अरमान दिल में
अब तो आने लगा दिल से शरार का लुत्फ़
चित्र साभार- गूगल
बहुत सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंसुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंउम्दा सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
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