मंज़र दिल का उदास अच्छा नहीं लगता
तुम नहीं होते पास अच्छा नहीं लगता
तेरी क़दबुलन्दी से नहीं इनकार कोई
लेकिन छोटे एहसास, अच्छा नहीं लगता
जैसे भी हैं हम रहने दो वैसा ही हमको
बनके कुछ रहना खास अच्छा नहीं लगता
जब से तेरी यादों ने बसाया है घर दिल में
ये क़ाफ़िला-ए-अन्फास अच्छा नहीं लगता
ये मुखौटों से कह दो जाकर नदीश अब
सच का इतना भी पास अच्छा नहीं लगता
चित्र साभार- गूगल
बहुत ही सुंदर शेरों से सजी रचना !!!!!!!!! सादर शुभकामना आदरणीय लोकेश जी |
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंवाह्ह.... लाज़वाब गज़ल लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा👌
शुक्रिया श्वेता जी
हटाएंउम्दा ..शायरी ..👌👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीया
हटाएंसुंदर अहसासों से सजी गजल हर शेर उम्दा।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या।
शुक्रिया आदरणीया
हटाएंवाह। बहुत ख़ूब। बेहद उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीया
हटाएंLajwab bhaii ji
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय
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