यूँ भी दर्द-ए-ग़ैर बंटाया जा सकता है
आंसू अपनी आँख में लाया जा सकता है
खुद को अलग करोगे कैसे, दर्द से बोलो
दाग, ज़ख्म का भले मिटाया जा सकता है
मेरी हसरत का हर गुलशन खिला हुआ है
फिर कोई तूफ़ान बुलाया जा सकता है
अश्क़ सरापा ख़्वाब मेरे कहते हैं मुझसे
ग़म की रेत पे बदन सुखाया जा सकता है
पलकों पर ठहरे आंसू पूछे है मुझसे
कब तक सब्र का बांध बचाया जा सकता है
वज्न तसल्ली का तेरी मैं उठा न पाऊं
मुझसे मेरा दर्द उठाया जा सकता है
इतनी यादों की दौलत हो गयी इकट्ठी
अब नदीश हर वक़्त बिताया जा सकता है
चित्र साभार- गूगल
सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंअतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 नवम्बर 2017 को साझा की गई है..................http://halchalwith5links.blogspot.comपर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल हमेशा की तरह...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
आभार आदरणीया
हटाएंवाह ! आदरणीय लोकेश जी अपनी क़लमकारी में ऐसा चमत्कार उत्पन्न करते हैं कि पाठक कह उठे वाह !!! वाह !!!! बधाई लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंबहुत सुंदर ,लाज़वाब हैं
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंसच कहा अहि खुद को दर्द से यानी खुद से अलग करना आसान नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल है ...
बहुत आभार आदरणीय
हटाएंवज्न तसल्ली का तेरी मैं उठा न पाऊं
जवाब देंहटाएंमुझसे मेरा दर्द उठाया जा सकता है।
क्या ख़ूब क्या ख़ूब। wahhhhh। बेमिसाल ग़ज़ल लोकेश जी।
बहुत आभार आदरणीय
हटाएंवाह ! क्या बात है ! बेहतरीन ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय
हटाएंउम्दा ! काबिलेतारीफ़
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय
हटाएंवजन तसल्ली का तेरी मैं उठा न पाऊं
जवाब देंहटाएंमुझसे मेरा दर्द उठाया जा सकता है---------
क्या बात है !!!!!!! आदरणीय लोकेश जी -- बहुत ही उम्दा शेर हैं सभी -- पर ये शेर उल्लेखनीय है | सस्नेह शुभकामना |
बहुत आभार आदरणीया
हटाएंअश्क़ सरापा ख़्वाब मेरे कहते हैं मुझसे
जवाब देंहटाएंग़म की रेत पे बदन सुखाया जा सकता है...बहुत सुन्दर आदरणीय
सादर