तिल गुड़ की खुश्बू सोंधी ये ख़ास खो न जाये
पुरखों की जो विरासत है पास, खो न जाये
उलझे न साज़िशों में रिश्तों की ये पतंग
अपनों को गिराने में एहसास खो न जाये
मेले ख़ुशी के जितने भी आएं ज़िन्दगी में
पर दुख में याद रखना कि आस खो न जाये
सुख की पतंग उलझे गर दुख की मुंडेरों पे
छूटे न डोर मन की विश्वास खो न जाये
मिलजुल के आज सोचें आओ नदीश हम सब
दुनिया से मुहब्बत की ये प्यास खो न जाये
चित्र साभार- गूगल
उलझे न साज़िशों में रिश्तों की ये पतंग
जवाब देंहटाएंअपनों को गिराने में एहसास खो न जाये..
सुंदर एहसास लिए मोहक रचना....
बहुत बहुत आभार
हटाएंउमीदों की डोर बंधी रहे ... आशा वोश्वास से भरे शेर ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आपका
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आपका
हटाएंबहुत सुन्दर रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आपका
हटाएंआशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आपका
हटाएंयह डोर तो साहित्यकारों के हाथ में है, समाज को चाहे जिधर ले जाएँ ..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसासों से भरी रचना
हार्दिक आभार आपका
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