लड़कपन को भी, जो दिल में है अक्सर मार देते हैं
मेरे ख़्वाबों को सच्चाई के मंज़र मार देते हैं
वफ़ाएं अपनी राह-ए-इश्क़ में जब भी रखी हमने
हिक़ारत से ज़माने वाले ठोकर मार देते हैं
नहीं गैरों की कोई फ़िक्र मैं अपनों से सहमा हूँ
बचाकर आँख जो पीछे से खंज़र मार देते हैं
कभी जब सांस लेती है मेरे एहसास की तितली
यहाँ के लोग तो फूलों को पत्थर मार देते हैं
कहाँ मारोगे कितने मारोगे तलवार से बोलो
सुना है लफ्ज़ से ही लोग लश्कर मार देते हैं
ये लहरों के कबीले ज़ुस्तज़ू में किसकी पागल हैं
पलट कर बारहा साहिल पे जो सर मार देते हैं
कभी तो खोदकर देखो नदीश ज़िस्म की तुरबत
मिलेंगी ख्वाहिशें हम जिनको अंदर मार देते हैं
चित्र साभार- गूगल
अपने जी ख़ंजर मार देते हैं ...
जवाब देंहटाएंग़ज़ब का शेर .. बाक़ी भी लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के ...
बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह्ह्ह...लाज़वाब👌👌👌
जवाब देंहटाएंहर शेर नायाब है अपने आप में।
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत उम्दा वाह गजल।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवारीय विषय विशेषांक "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 29 जनवरी 2018 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुंदर मनमोहक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह.. अप्रतिम शब्द..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंलाजवाब गजल....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत आभार
हटाएंbehtreen post
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंकभी तो खोदकर देखो नदीश ज़िस्म की तुरबत
जवाब देंहटाएंमिलेंगी ख्वाहिशें हम जिनको अंदर मार देते हैं------
वाह !! आदरणीय लोकेश जी -- अप्रितम शेर !!!!!!
बहुत बहुत आभार
हटाएंउम्दा ग़ज़ल. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंअप्रतिम रचना, यह शेर बहुत सुंदर लगा-
जवाब देंहटाएंये लहरों के कबीले ज़ुस्तज़ू में किसकी पागल हैं
पलट कर बारहा साहिल पे जो सर मार देते हैं ...
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत लाजबाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत ही प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंकभी तो खोदकर देखो नदीश ज़िस्म की तुरबत
जवाब देंहटाएंमिलेंगी ख्वाहिशें हम जिनको अंदर मार देते हैं-
वाह.. लाजवाब शेर...
बहुत बहुत आभार
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