वस्ल की शब का है मंज़र आँख में ठहरा हुआ
एक सन्नाटा है सारे शहर में फैला हुआ
दोस्ती-ओ-प्यार की बातें जो की मैंने यहाँ
किस कदर जज़्बात का फिर मेरे तमाशा हुआ
क्यों मैं समझा था सभी मेरे हैं औ' सबका हूँ मैं
सोचता हूँ जाल में रिश्तों के अब उलझा हुआ
फुसफुसा कर क्या कहा जाने ख़ुशी से दर्द ने
आंसुओं के ज़िस्म का हर ज़ख्म है सहमा हुआ
रिस रही थी दर्द की बूंदें भी लफ़्ज़ों से नदीश
घर मेरे अहसास का था इस कदर भीगा हुआ
चित्र साभार-गूगल
बेहद दर्दभरी, हृदयचीरती अभिव्यक्ति लोकेश जी...मानो शब्दों के घने बादल से दर्द की बूँदें टपक रही हो।
जवाब देंहटाएंहमेशा की.तरह शानदार अभिव्यक्ति लोकेश जी...👌👌👌
बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह लाजवाब
जवाब देंहटाएंबून्द बून्द सा बह रहा
हर लफ्ज अश्क बन आज
दर्द दर्द सा दर्द हो
कोई कब तक सहता जाय।
बहुत सुंदर...
हटाएंबेहद शुक्रिया
टूटते विश्वास का आखिरी छोर ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन उम्दा गजल।
बहुत बहुत आभार
हटाएंएक सन्नाटा है सारे शहर में पसरा हुआ ...
जवाब देंहटाएंवाह ... लाजवाब मतले के साथ कमाल की ग़ज़ल ... हर शेर काबिले तारीफ़ ....
बहुत बहुत आभार
हटाएंएक एक शेर लाजवाब..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवस्ल की शब का है मंज़र आँख में ठहरा हुआ
जवाब देंहटाएंएक सन्नाटा है सारे शहर में फैला हुआ...वाह लाजवाब नज़्म..
बहुत लाजवाब शेर ...
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी और मार्मिक ग़ज़ल ।
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