बनकर तेरी यादों की ख़ुश्बू आये हैं
दर्द के कुछ कस्तूरी आहू आये हैं
भेजा है पैग़ाम तुम्हारे ख़्वाबों ने
बनकर क़ासिद आँख में आंसू आये हैं
रात अमावस की औ' यादों की टिमटिम
ज्यों राहत के चंचल जुगनू आये हैं
महका-महका हर क़तरा है मेरे तन का
हम जब से तेरा दामन छू आये हैं
जब भी बादल काले-काले दिखे नदीश
ज़हन में बस तेरे ही गेसू आये हैं
चित्र साभार- गूगल
आहू- मृग, हिरण
क़ासिद- पत्रवाहक, डाकिया
गेसू- ज़ुल्फ़, बाल
वाह! बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया
हटाएंवाह रूहानी
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया
हटाएं२ शेर बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंहर शेर लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंउम्दा गजल ।
बेहद शुक्रिया
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जवाब देंहटाएं--- वाह !!!! आदरणीय लोकेश जी बहुत ही लाजवाब शेर पर ये शेर मुझे खास लगा |--
जा है पैग़ाम तुम्हारे ख़्वाबों ने
बनकर क़ासिद आँख में आंसू आये हैं
आपके भावपूर्ण लेखन की मुरीद हूँ | सादर शुभकामना |
बहुत बहुत आभार
हटाएंमहका-महका हर क़तरा है मेरे तन का
जवाब देंहटाएंहम जब से तेरा दामन छू आये हैं
लाजवाब गजल.....
एक से बढकर एक शेर
वाह!!!
हार्दिक आभार आपका
हटाएंवाह बेहद खूबसूरत 👌👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
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