समझदार तो सिर्फ़ सियासत करते हैं
पागल हैं जो लोग, मुहब्बत करते हैं
ये तो सोचा नहीं दोस्ती में हमने
आगे चलकर दोस्त अदावत करते हैं
दिल से उसे भुला दें, गर है शर्त यही
सांसों की हम रद्द ज़मानत करते हैं
मिलता है अश्क़ों को देश निकाला जब
सपने, आँखें, नींद बग़ावत करते हैं
कोना तेरी यादों का महफूज़ रखा
इतनी दिल के ज़ख़्म रियायत करते हैं
अपनी तुर्बत से अब चलो नदीश उठो
मिट्टी से वो रोज़ शिकायत करते हैं
चित्र साभार- गूगल
तुर्बत- कब्र
तुर्बत- कब्र
समझदार तो सिर्फ़ सियासत करते हैं
जवाब देंहटाएंपागल हैं जो लोग, मुहब्बत करते हैं
बहुत ही खूबसूरत मतला। वाह वाह। सारी ग़ज़ल ही एक शाहकार जैसी है।
जितने गिले हैं सारे मुँह से निकाल डालो
रखो न दिल में प्यारे मुँह से निकाल डालो।
आभार आदरणीय
हटाएंबढ़िया शेर
सभी शेर लाजवाब आप बहुत उम्दा लिखते है और सलीके से।
जवाब देंहटाएंवाह उम्दा सुंदर
बेहद शुक्रिया आदरणीया
हटाएंWah Wah 👌
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार श्वेता जी
हटाएंमिलता है अश्क़ों को देश निकाला जब
जवाब देंहटाएंसपने, आँखें, नींद बग़ावत करते हैं......... वाह! उम्दा अलफ़ाज़!!!
आभार आदरणीय
हटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंवाह वाह क्या बात है ..
जवाब देंहटाएंमतला पढ़ते ही समां गजलनुमा हो गया.
खैर
आभार आदरणीय
हटाएंलाजवाब गजल ....हमेशा की तरह...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
आभार आदरणीया
हटाएंमुहब्बत पागल पन है तो क़बूल है ...
जवाब देंहटाएंहर शेर कमाल ...
बेहद शुक्रिया
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