बिछड़ते वक़्त तेरे अश्क़ का हर इक क़तरा
लिपट के रास्ते से मेरे तर-ब-तर निकला
खुशी से दर्द की आँखों में आ गए आंसू
मिला जो शख़्स वो ख़्वाबों का हमसफ़र निकला
रोज दाने बिखेरता है जो परिंदों को
उसके तहखाने से कटा हुआ शजर निकला
हर घड़ी साथ ही रहा है वो नदीश मेरे
दर्द का एक पल जो ख़ुशियों से बेहतर निकला
चित्र साभार- गूगल
क्या कहें लोकेश जी..दर्द का कोई राग छेड़ दिया हो मानो...बेहद उम्दा ग़ज़ल..हर शेर मन छू गया..👌👌
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें..।
बेहद शुक्रिया श्वेता जी
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविववार 10 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंखुशी से दर्द की आँखों में आ गए आंसू
जवाब देंहटाएंमिला जो शख़्स वो ख़्वाबों का हमसफ़र निकला......वाह! क्या खूब बयान किया आपने मन के तरानों को!!!!
बहुत बहुत आभार
हटाएंक्या खूब उम्दा बानगी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबेहतरीन लोकेश जी...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंकटे हुए शजर का दर्द ही शायद उसे दाने बाँटने को मजबूर कर रहा है ...
लाजवाब ग़ज़ल के कामयाब शेर ... बहुत ख़ूब ...
बहुत बहुत आभार
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