यूँ भी दर्द-ए-ग़ैर बंटाया जा सकता है
आंसू अपनी आँख में लाया जा सकता है
ख़ुद को अलग करोगे कैसे दर्द से, बोलो
दाग़, ज़ख्म का भले मिटाया जा सकता है
अश्क़ सरापा* ख़्वाब मेरे, कहते हैं मुझसे
ग़म की रेत पे बदन सुखाया जा सकता है
मेरी हसरत का हर गुलशन खिला हुआ है
फिर कोई तूफ़ान बुलाया जा सकता है
पलकों पर ठहरे आंसू, पूछे है मुझसे
कब तक सब्र का बांध बचाया जा सकता है
वज़्न तसल्ली का तेरी मैं उठा न पाऊं
मुझसे मेरा दर्द उठाया जा सकता है
इतनी यादों की दौलत हो गई इकट्ठी
अब नदीश हर वक़्त बिताया जा सकता है
आंसू अपनी आँख में लाया जा सकता है
ख़ुद को अलग करोगे कैसे दर्द से, बोलो
दाग़, ज़ख्म का भले मिटाया जा सकता है
अश्क़ सरापा* ख़्वाब मेरे, कहते हैं मुझसे
ग़म की रेत पे बदन सुखाया जा सकता है
मेरी हसरत का हर गुलशन खिला हुआ है
फिर कोई तूफ़ान बुलाया जा सकता है
पलकों पर ठहरे आंसू, पूछे है मुझसे
कब तक सब्र का बांध बचाया जा सकता है
वज़्न तसल्ली का तेरी मैं उठा न पाऊं
मुझसे मेरा दर्द उठाया जा सकता है
इतनी यादों की दौलत हो गई इकट्ठी
अब नदीश हर वक़्त बिताया जा सकता है
चित्र साभार- गूगल
*सरापा- सर से पाँव तक
*सरापा- सर से पाँव तक
वाह्ह्ह....वाह्ह्ह...गज़ब भाव और बेहद खूबसूरत एहसास से भरी गज़ल है लोकेश जी...शानदार👌👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंWah sir bht umda
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंवाह बहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंखूबसूरत भावों से भरी बेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंसच है ज़ख़्म भर जते हैं पर दर्द रह जाता है ...
जवाब देंहटाएंहर शेर बहुत कमाल की बात रखता हुआ ... शानदार ग़ज़ल ...
हार्दिक आभार आपका
हटाएंलाजवाब ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर रचना...👌👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएं💐💐कोई सानी नहीं
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंअश्क़ सरापा ख़्वाब मेरे, कहते हैं मुझसे
जवाब देंहटाएंग़म की रेत पे बदन सुखाया जा सकता है।
वाह वाह बहुत ख़ूब नदीश साहेब।
हार्दिक आभार आपका
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 26 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंपलकों पर ठहरे आंसू, पूछे है मुझसे
जवाब देंहटाएंकब तक सब्र का बांध बचाया जा सकता है।
वाह लाजवाब भावों की उम्दा गजल ।
हार्दिक आभार आपका
हटाएंपलकों पर ठहरे आंसू, पूछे है मुझसे
जवाब देंहटाएंकब तक सब्र का बांध बचाया जा सकता है
Waaah. बहुत ही शानदार linesलिखी हैं।आनंद आ गया।आभार।
हार्दिक आभार आपका
हटाएंपलकों पर ठहरे आंसू, पूछे है मुझसे
जवाब देंहटाएंकब तक सब्र का बांध बचाया जा सकता है
वज़्न तसल्ली का तेरी मैं उठा न पाऊं
मुझसे मेरा दर्द उठाया जा सकता है
इतनी यादों की दौलत हो गई इकट्ठी
अब नदीश हर वक़्त बिताया जा सकता है
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वाह वाह क्या ग़ज़ल है आदरणीय... बेहद हृदयस्पर्शी... बहुत ख़ूब
हार्दिक आभार आपका
हटाएंह्रदय स्पर्श उम्दा सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
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