ख़्वाब जिसके तमाम उम्र संजोई आँखें
उसकी यादों ने आंसुओं से भिगोई आँखें
तेरे ख़्वाबों की हर एक वादाखिलाफ़ी की कसम
मुद्दतें हो गई हैं फिर भी न सोई आँखें
ज़िक्र छेड़ो न अभी यार तुम ज़माने का
हुश्न के ख़्वाबों-ख़्यालों में है खोई आँखें
फूल में याद के बिखरी हुई है शबनम सी
रात भर यूँ लगे है जैसे कि रोई आँखें
तेरी ख़ुश्बू से महकता है प्यार का गुलशन
सींच के अश्क़, बीज याद के बोई आँखें
हाले-दिल कह न सके हम भी और नदीश यहाँ
मेरी आँखों को भी न पढ़ सकी कोई आँखें
चित्र साभार- गूगल
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २७ अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत ही उम्दा ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंशानदार लिखा हैं.
ज़िक्र छेड़ो न अभी यार तुम ज़माने का
हुश्न के ख़्वाबों-ख़्यालों में है खोई आँखें
हार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत बहुत सुंदर लोकेश जी!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा अभिव्यक्ति
हार्दिक आभार आपका
हटाएंअति सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंलाजवाब 👌👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबधाई आपको
हार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर|
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंख़्वाब जिसके तमाम उम्र संजोई आँखें
जवाब देंहटाएंउसकी यादों ने आंसुओं से भिगोई आँखें
क्या बात है आदरणीय लोकेश जी | ये रचना और सभी शेर आत्मा को छू गये |माँ शारदे की असीम अनुकम्पा है आपके ऊपर | सादर शुभकामनायें |
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंबहुत ही उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
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