कश्कोल लेके आया हूँ, आँखों में आस का
रक्खोगे पास, सिर्फ तुम ही मेरी प्यास का
यादों के हवाले ही, इसे कर दो आख़िरश
कुछ और ही चारा नहीं दिल-ए-उदास का
कर ली है इसलिए भी तो नींदों से दुश्मनी
आँखों में ख़्वाब जागता रहता है ख़ास का
निकला है उसी शख़्स से मीलों का फासला
लगता था मेरे दिल को जो धड़कन के पास का
महसूस ये हुआ है, शब-ए-वस्ल ऐ नदीश
लिपटे हैं आग से बदन लिए कपास का
चित्र साभार- गूगल
वाह बहुत खूब बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह !लाज़बाब आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह !!वाह ,बहुत खूब...... ,सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंनिकला है उसी शख़्स से मीलों का फासला
जवाब देंहटाएंलगता था मेरे दिल को जो धड़कन के पास का
बेहद लाजवाब गजल हमेशा की तरह....
वाह!!!
बहुत बहुत आभार
हटाएंनिकला है उसी शख़्स से मीलों का फासला
जवाब देंहटाएंलगता था मेरे दिल को जो धड़कन के पास का
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल
बहुत बहुत आभार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंनिकला है उसी शख़्स से मीलों का फासला
जवाब देंहटाएंलगता था मेरे दिल को जो धड़कन के पास का
...वाह, लाज़वाब...सभी अशआर बहुत उम्दा..
बहुत बहुत आभार
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/113.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंवाह बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंकोई हसीं ख्वाब हो तो नींद से बेरुखी होने में बुराई नहीं ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर हैं ग़ज़ल के लोकेश जी ...
आभार आदरणीय
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