फेफड़ों को खुली हवा न मिली
न मिली आपसे वफ़ा न मिली
दुश्मनी ढूँढ़-ढूँढ़ कर हारी
दोस्ती है जो लापता, न मिली
वक़्त पर छोड़ दिया है सब कुछ
दर्दे-दिल की कोई दवा न मिली
हर किसी हाथ में मिला खंज़र
आपकी बात भी जुदा न मिली
सोचता है नदीश ये अक्सर
ज़िन्दगी आपके बिना न मिली
चित्र साभार- गूगल
बहुत खूब,सादर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब 👌
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-07-2019) को "नदी-गधेरे-गाड़" (चर्चा अंक- 3392) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह बहुत खूबसूरत /उम्दा।
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा सृजन ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना रविवार १४ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
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