तेरी यादों ने कुरेदा है किस तरीके से
ज़ख़्म हर, दिल का महकने लगा सलीके से
तेरे ख़्याल में वो लुत्फ़ मुझे आने लगा
नज़र को सारे मनाज़िर लगे हैं फीके से
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तेरी नजर में बुरा हूँ तो बुरा कह दे ना
तू खुश है, या है मुझसे ख़फ़ा कह दे ना
मेरी वफ़ा तुझे लगे वफ़ा, वफ़ा कह दे
अगर लगे कि दगा है तो दगा कह दे ना
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यादों की इक छाँव में बैठा रहता हूँ
जवाब देंहटाएंअक्सर दर्द के गाँव में बैठा रहता हूँ
तुमने मुझसे हाल जहाँ पूछा था मेरा
मैं अब भी उस ठाँव में बैठा रहता हूँ
~~~~~वाह बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-11-2019) को "गठबन्धन की नाव" (चर्चा अंक- 3518) पर भी होगी।
हटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंबहुत खूब लोकेश जी ...
जवाब देंहटाएंकमाल के मुक्तक ... मन में गहरे उतारते ...
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 12 नवंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
बहुत बहुत आभार आदरणीया
हटाएंसभी मुक्तक एक से बढ़ कर एक...बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
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