यादों की इक छाँव में बैठा रहता हूँ
अक्सर दर्द के गाँव में बैठा रहता हूँ
तुमने मुझसे हाल जहाँ पूछा था मेरा
मैं अब भी उस ठाँव में बैठा रहता हूँ
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तुमको गर हैरानी है, तो कह सकते हो
रिश्ता ये बेमानी है, तो कह सकते हो
मैं बाहर से जो भी हूँ वो ही अंदर से
ये मेरी नादानी है, तो कह सकते हो
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वाह!!!
जवाब देंहटाएंकमाल की भावाभिव्यक्ति..
लाजवाब
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंबहुत उम्दा भाव ...,सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंबेहद उम्दा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना के चयन के लिए बेहद शुक्रिया
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-12-2019) को "नारी का अपकर्ष" (चर्चा अंक-3545) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना के चयन के लिए हार्दिक आभार
हटाएंवाहः मधुर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ....... ,.....11 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना के चयन के लिए हार्दिक आभार
हटाएंबढ़िया मुक्तक है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंबेहतरीन सृजन सर
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक आभार आपका
हटाएंबेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंक्या आपको वेब ट्रैफिक चाहिए मैं वेब ट्रैफिक sell करता हूँ,
जवाब देंहटाएंFull SEO Optimize
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बहुत शुक्रिया
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