जब भी मेरे ज़ेहन में संवरती रही ग़ज़ल
तेरे ही ख़्यालों से महकती रही ग़ज़ल
झरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की
और उंगलियाँ एहसास की लिखती रही ग़ज़ल
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आँख से चेहरा तेरा जाता नहीं कभी
दिल भूल के भी भूलने पाता नहीं कभी
हो धूप ग़म की या हो अश्क़ों की बारिशें
फूल तेरी यादों का मुरझाता नहीं कभी
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लब पे लबों की छुअन का एहसास रहने दो
बस एक पल तो खुद को मेरे पास रहने दो
ये तय है, तुम भी छोड़ के जाओगे एक दिन
लेकिन कहीं तो झूठा ही विश्वास रहने दो
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चित्र साभार- गूगल
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार आपका
हटाएंआपका लेखन लाजवाब है लोकेश जी
जवाब देंहटाएंसचमुच ठहराव लिए कहीं ठहरता सा।
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंसभी मुक्तक बेहतरीन हैं लोकेश जी।
जवाब देंहटाएंये तय है, तुम भी छोड़ के जाओगे एक दिन
लेकिन कहीं तो झूठा ही विश्वास रहने दो......सुंदर
हार्दिक आभार आपका
हटाएं"हो धूप ग़म की या हो अश्क़ों की बारिशें
जवाब देंहटाएंफूल तेरी यादों का मुरझाता नहीं कभी"
और
"ये तय है, तुम भी छोड़ के जाओगे एक दिन
लेकिन कहीं तो झूठा ही विश्वास रहने दो"
ये पंक्तियाँ जितनी माशूका के लिए प्रतीत हो रही ... उतनी ही जीवन-दर्शन के लिए भी ...
बेहद शुक्रिया सर
हटाएंझरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की
जवाब देंहटाएंऔर उंगलियाँ एहसास की लिखती रही ग़ज़ल
बहुत खूब ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमन
हार्दिक आभार आपका
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