अपनी आँखों से मुहब्बत का बयाना कर दे
नाम पे मेरे ये अनमोल खज़ाना कर दे
सिमटा रहता है किसी कोने में, बच्चे जैसा
मेरे एहसास को छू ले तू, सयाना कर दे
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रंग भरूँ शोखी में आज शबाबों का
रुख़ पे तेरे मल दूँ अर्क गुलाबों का
होंठों का आलिंगन कर यूँ होंठों से
हो जाये श्रृंगार हमारे ख़्वाबों का
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हैं सुर्ख़ होंठ जैसे पंखुड़ी गुलाब की
रुख़सार हैं जैसे कि झलक माहताब की
आँखों की चालबाजियां, ख़ुश्बू, बदन और रंग
सबसे जुदा है दास्तां तेरे शबाब की
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चित्र साभार- गूगल
"मेरे एहसास को छू ले तू, सयाना कर दे"
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया सर
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२९-१२ -२०१९ ) को " नूतनवर्षाभिनन्दन" (चर्चा अंक-३५६४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
हार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
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