याद के त्यौहार को तेरी कमी अच्छी लगी
बात तपते ज़िस्म को ये शबनमी अच्छी लगी
इसलिए हम लौट आए प्यास लेकर झील से
ख़ुश्क लब को नीम पलकों की नमी अच्छी लगी
🔹 🔸 🔹 🔸 🔹 🔸 🔹
ज़िन्दगी भी कहाँ अपनी होकर मिली
गर ख़ुशी भी मिली, वो भी रोकर मिली
मसखरा बन हँसाया जिन्हें उम्र भर
मिला उनसे कुछ तो ये ठोकर मिली
🔸 🔹 🔸 🔹 🔸 🔹 🔸
जो आँख से आंसू झरे, देख लेते
नज़र इक मुझे भी अरे देख लेते
हुए गुम क्यूँ आभासी रंगीनियों में
मुहब्बत बदन से परे देख लेते
🔹 🔸 🔹 🔸 🔹 🔸 🔹
चित्र साभार- गूगल
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार
हटाएंज़िन्दगी भी कहाँ अपनी होकर मिली
जवाब देंहटाएंगर ख़ुशी भी मिली, वो भी रोकर मिली
मसखरा बन हँसाया जिन्हें उम्र भर
मिला उनसे कुछ तो ये ठोकर मिली
बहुत खूब..... ,सादर नमन आपको
हार्दिक आभार आपका
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-01-2020) को "बेटियों एक प्रति संवेदनशील बने समाज" (चर्चा अंक - 3591) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
मेरी रचना के चयन के लिए हार्दिक आभार
हटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति आपकी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंबेहतरीन लेखन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएं