कभी देखा नहीं तुमने कि ज़ख़्मों से भरा हूँ मैं
फ़क़त जीने को इक पल के लिये हर पल मरा हूँ मैं
नज़रअंदाज़ मुझको इस तरह से दिल ये करता है
कि जैसे अपने भीतर शख़्स कोई दूसरा हूँ मैं
ख़ुशी का ख़्वाब भी कोई कभी आता नहीं मुझको
कसौटी पे तेरी ऐ ग़म बता कितना खरा हूँ मैं
ख़लल पड़ जाए न ख़्वाबों में तेरे नींद से मेरी
ख़यालों की किसी आहट से भी कितना डरा हूँ मैं
खिज़ां कहती है मुझसे ये बहारें अब न आएंगी
उम्मीदे वस्ल वजह से तेरी अब भी हरा हूँ मैं
रखा जब सामने उनके ये दिल तो हँस दिये खुलकर
बता मुझको नदीश अब तू ही ये क्या मसखरा हूँ मैं
चित्र साभार- गूगल
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०१ -0३-२०२०) को 'अधूरे सपनों की कसक' (चर्चाअंक -३६२७) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
मेरी रचना के चयन के लिए बेहद आभार
हटाएं
जवाब देंहटाएंखिज़ां कहती है मुझसे ये बहारें अब न आएंगी
उम्मीदे वस्ल वजह से तेरी अब भी हरा हूँ मैं
बहुत खूब लोकेश जी ,सादर नमन
हार्दिक आभार आपका
हटाएंख़ुशी का ख़्वाब भी कोई कभी आता नहीं मुझको
जवाब देंहटाएंकसौटी पे तेरी ऐ ग़म बता कितना खरा हूँ मैं
वाह वाह !!!!!
लाजवाब गजल हमेशा की तरह
हार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर सृजन लोकेश जी ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
हटाएंखिज़ां कहती है मुझसे ये बहारें अब न आएंगी
जवाब देंहटाएंउम्मीदे वस्ल वजह से तेरी अब भी हरा हूँ मैं...
बहुत खूब....लाजवाब.., बेहतरीन ।।
बहुत समय के बाद आपका बेमिसाल सृजन पढ़ने को मिला । आभार...,
हार्दिक आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर रचना, लोकेश भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका दी
हटाएंखिज़ां कहती है मुझसे ये बहारें अब न आएंगी
जवाब देंहटाएंउम्मीदे वस्ल वजह से तेरी अब भी हरा हूँ मैं...
बहुत खूब !!
अत्यंत सुन्दर सृजन ।